शेर अर्ज करता हुँ आपको गौर फरमाइएगा,
लगे दिलको तो माफ करें रुठ मत जाईएगा ।
(१)
दिल दिया खुसिसे आपको जला डाला आपने,
दिल जलोंको जलाके हुजुर! क्या पाईएगा ।
(२)
दुवायें करता हु खुदासे रखें खुसहाल आपको,
जब भी पडे जरुरत मेरी याद फरमाईएगा ।
(३)
जितना भी जलें गिला नहीं चाहतमें आपकी,
जरुरत मेरी पडे तो हुजुर, हुक्म फरमाईएगा ।
(४)
कल थे, आज हैं आपके, रहेंगे आखिरी दमतक ,
कसम आपकी मिलनेसे ऐसे न कतराईएगा ।
रचना: यज्ञ प्रसाद गिरी
No comments:
Post a Comment