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Friday, August 23, 2013

शेर अर्ज करता हुँ आपको गौर फरमाइएगा, लगे दिलको तो माफ करें रुठ मत जाईएगा । (१) दिल दिया खुसिसे आपको जला डाला आपने, दिल जलोंको जलाके हुजुर! क्या पाईएगा । (२) दुवायें करता हु खुदासे रखें खुसहाल आपको, जब भी पडे जरुरत मेरी याद फरमाईएगा । (३) जितना भी जलें गिला नहीं चाहतमें आपकी, जरुरत मेरी पडे तो हुजुर, हुक्म फरमाईएगा । (४) कल थे, आज हैं आपके, रहेंगे आखिरी दमतक , कसम आपकी मिलनेसे ऐसे न कतराईएगा । रचना: यज्ञ प्रसाद गिरी

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